श्रीराम के जीत की खबर लेकर हनुमानजी चले सीता के पास
पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना । लंका जाहु कहेउ भगवाना ॥
समाचार जानकिहि सुनावहु । तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु ॥१॥
तब हनुमंत नगर महुँ आए । सुनि निसिचरी निसाचर धाए ॥
बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही । जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही ॥२॥
दूरहि ते प्रनाम कपि कीन्हा । रघुपति दूत जानकीं चीन्हा ॥
कहहु तात प्रभु कृपानिकेता । कुसल अनुज कपि सेन समेता ॥३॥
सब बिधि कुसल कोसलाधीसा । मातु समर जीत्यो दससीसा ॥
अबिचल राजु बिभीषन पायो । सुनि कपि बचन हरष उर छायो ॥४॥
(छंद)
अति हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुनि पुनि रमा ।
का देउँ तोहि त्रेलोक महुँ कपि किमपि नहिं बानी समा ॥
सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं ।
रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं ॥
(दोहा)
सुनु सुत सदगुन सकल तव हृदयँ बसहुँ हनुमंत ।
सानुकूल कोसलपति रहहुँ समेत अनंत ॥ १०७ ॥