वापिस लौटने से पहले हनुमानजी सीता को मिले
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा । जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा ॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ । हरष समेत पवनसुत लयऊ ॥१॥
Maatu mohi deeje kachhu cheenha Jaise Raghunaayak mohi deenha ।
Choodamani utaari tab dayaoo Harash samet pavanasut layaoo ॥
कहेहु तात अस मोर प्रनामा । सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ॥
दीन दयाल बिरिदु सँभारी । हरहु नाथ मम संकट भारी ॥२॥
Kahehu taat as mor pranaama Sab prakaar prabhu pooranakaama ।
Deen dayaal biridu sambhaaree Harahu naath mam sankat bhaaree ॥
तात सक्रसुत कथा सुनाएहु । बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु ॥
मास दिवस महुँ नाथ न आवा । तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा ॥३॥
Taat sakrasut katha sunaaehu Baan prataap prabhuhi samuzaehu ।
Maas divas mahu naath na aava Tau puni mohi jiat nahi paava ॥
कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना । तुम्हहू तात कहत अब जाना ॥
तोहि देखि सीतलि भइ छाती । पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती ॥४॥
Kahu kapi kehi bidhi rakhau praana Tumhahoo Taat kahat ab jaana ।
Tohi dekhi seetali bhai chhatee Puni mo kahu soi dinu so raatee ॥
(दोहा)
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह ।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह ॥ २७ ॥
Janakasutahi samuzaai kari bahu bidhi dheeraju deenh ।
Charan kamal siru naai kapi gavanu Raam pahi keenh ॥