हनुमानजी ने भरत को राम-लक्ष्मण का समाचार दिया
तात कुसल कहु सुखनिधान की । सहित अनुज अरु मातु जानकी ॥
कपि सब चरित समास बखाने । भए दुखी मन महुँ पछिताने ॥१॥
अहह दैव मैं कत जग जायउँ । प्रभु के एकहु काज न आयउँ ॥
जानि कुअवसरु मन धरि धीरा । पुनि कपि सन बोले बलबीरा ॥२॥
तात गहरु होइहि तोहि जाता । काजु नसाइहि होत प्रभाता ॥
चढ़ु मम सायक सैल समेता । पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता ॥३॥
सुनि कपि मन उपजा अभिमाना । मोरें भार चलिहि किमि बाना ॥
राम प्रभाव बिचारि बहोरी । बंदि चरन कह कपि कर जोरी ॥४॥
(दोहा)
तव प्रताप उर राखि प्रभु जेहउँ नाथ तुरंत ।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत ॥ ६०(क) ॥
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार ।
मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार ॥ ६०(ख) ॥