हिमालय द्वारा उमा के विवाह की तैयारी
सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा । मदन दहन सुनि अति दुखु पावा ॥
बहुरि कहेउ रति कर बरदाना । सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना ॥१॥
हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई । सादर मुनिबर लिए बोलाई ॥
सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई । बेगि बेदबिधि लगन धराई ॥२॥
पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही । गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही ॥
जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती । बाचत प्रीति न हृदयँ समाती ॥३॥
लगन बाचि अज सबहि सुनाई । हरषे मुनि सब सुर समुदाई ॥
सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे । मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे ॥४॥
(दोहा)
लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान ।
होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान ॥ ९१ ॥