Kaikeyi bound Dashratha to fulfill two boons
By-Gujju01-05-2023
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कैकेयी दशरथ को दो वर पूर्ण करने के लिए बाध्य करती है
जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई । तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई ॥
थाति राखि न मागिहु काऊ । बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ ॥१॥
झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू । दुइ कै चारि मागि मकु लेहू ॥
रघुकुल रीति सदा चलि आई । प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ॥२॥
नहिं असत्य सम पातक पुंजा । गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा ॥
सत्यमूल सब सुकृत सुहाए । बेद पुरान बिदित मनु गाए ॥३॥
तेहि पर राम सपथ करि आई । सुकृत सनेह अवधि रघुराई ॥
बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली । कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली ॥४॥
(दोहा)
भूप मनोरथ सुभग बनु सुख सुबिहंग समाजु ।
भिल्लनि जिमि छाड़न चहति बचनु भयंकरु बाजु ॥ २८ ॥
॥ मासपारायण, तेरहवाँ विश्राम ॥