Sunday, 17 November, 2024

Kaikeyi think Manthara is right

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Kaikeyi think Manthara is right

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कैकेयी को लगा की मंथरा की बात गौर करने लायक  
 
कैकयसुता सुनत कटु बानी । कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी ॥
तन पसेउ कदली जिमि काँपी । कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी ॥१॥
 
कहि कहि कोटिक कपट कहानी । धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी ॥
फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली । बकिहि सराहइ मानि मराली ॥२॥
 
सुनु मंथरा बात फुरि तोरी । दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी ॥
दिन प्रति देखउँ राति कुसपने । कहउँ न तोहि मोह बस अपने ॥३॥ 
 
काह करौ सखि सूध सुभाऊ । दाहिन बाम न जानउँ काऊ ॥४॥
(दोहा)
 
अपने चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह ।
केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह ॥ २० ॥

 

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