कालकेतु साधु के साथ षडयंत्र में शामिल
(चौपाई)
तापस नृप निज सखहि निहारी । हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी ॥
मित्रहि कहि सब कथा सुनाई । जातुधान बोला सुख पाई ॥१॥
अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा । जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा ॥
परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई । बिनु औषध बिआधि बिधि खोई ॥२॥
कुल समेत रिपु मूल बहाई । चौथे दिवस मिलब मैं आई ॥
तापस नृपहि बहुत परितोषी । चला महाकपटी अतिरोषी ॥३॥
भानुप्रतापहि बाजि समेता । पहुँचाएसि छन माझ निकेता ॥
नृपहि नारि पहिं सयन कराई । हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई ॥४॥
(दोहा)
राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि ।
लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि ॥ १७१ ॥