Friday, 15 November, 2024

Kamdev unsuccessful, boost Narad’s ego

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Kamdev unsuccessful, boost Narad’s ego

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कामदेव नाकामियाब, नारद का अहंकार सातवें आसमान पर
 
(चौपाई)
भयउ न नारद मन कछु रोषा । कहि प्रिय बचन काम परितोषा ॥
नाइ चरन सिरु आयसु पाई । गयउ मदन तब सहित सहाई ॥१॥
 
मुनि सुसीलता आपनि करनी । सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी ॥
सुनि सब कें मन अचरजु आवा । मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा ॥२॥
 
तब नारद गवने सिव पाहीं । जिता काम अहमिति मन माहीं ॥
मार चरित संकरहिं सुनाए । अतिप्रिय जानि महेस सिखाए ॥३॥
 
बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं । जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं ॥
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ । चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ ॥४॥
 
(दोहा)
संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान ।
भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान ॥ १२७ ॥

 

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