Kaushalya support Vasistha
By-Gujju01-05-2023
Kaushalya support Vasistha
By Gujju01-05-2023
कौशल्या ने वशिष्ठ की बात का समर्थन किया
कौसल्या धरि धीरजु कहई । पूत पथ्य गुर आयसु अहई ॥
सो आदरिअ करिअ हित मानी । तजिअ बिषादु काल गति जानी ॥१॥
बन रघुपति सुरपति नरनाहू । तुम्ह एहि भाँति तात कदराहू ॥
परिजन प्रजा सचिव सब अंबा । तुम्हही सुत सब कहँ अवलंबा ॥२॥
लखि बिधि बाम कालु कठिनाई । धीरजु धरहु मातु बलि जाई ॥
सिर धरि गुर आयसु अनुसरहू । प्रजा पालि परिजन दुखु हरहू ॥३॥
गुर के बचन सचिव अभिनंदनु । सुने भरत हिय हित जनु चंदनु ॥
सुनी बहोरि मातु मृदु बानी । सील सनेह सरल रस सानी ॥४॥
(छंद)
सानी सरल रस मातु बानी सुनि भरत ब्याकुल भए ।
लोचन सरोरुह स्त्रवत सींचत बिरह उर अंकुर नए ॥
सो दसा देखत समय तेहि बिसरी सबहि सुधि देह की ।
तुलसी सराहत सकल सादर सीवँ सहज सनेह की ॥
(सोरठा)
भरतु कमल कर जोरि धीर धुरंधर धीर धरि ।
बचन अमिअँ जनु बोरि देत उचित उत्तर सबहि ॥ १७६ ॥