प्रतापभानु अपने यजमान का परिचय पूछता है
(चौपाई)
भलेहिं नाथ आयसु धरि सीसा । बाँधि तुरग तरु बैठ महीसा ॥
नृप बहु भाति प्रसंसेउ ताही । चरन बंदि निज भाग्य सराही ॥१॥
पुनि बोले मृदु गिरा सुहाई । जानि पिता प्रभु करउँ ढिठाई ॥
मोहि मुनिस सुत सेवक जानी । नाथ नाम निज कहहु बखानी ॥२॥
तेहि न जान नृप नृपहि सो जाना । भूप सुह्रद सो कपट सयाना ॥
बैरी पुनि छत्री पुनि राजा । छल बल कीन्ह चहइ निज काजा ॥३॥
समुझि राजसुख दुखित अराती । अवाँ अनल इव सुलगइ छाती ॥
सरल बचन नृप के सुनि काना । बयर सँभारि हृदयँ हरषाना ॥४॥
(दोहा)
कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति समेत ।
नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेति ॥ १६० ॥