राजा सब ब्राह्मणो को ब्रह्मभोजन के लिए आमंत्रित करता है
(चौपाई)
आपु बिरचि उपरोहित रूपा । परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा ॥
जागेउ नृप अनभएँ बिहाना । देखि भवन अति अचरजु माना ॥१॥
मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी । उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी ॥
कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं । पुर नर नारि न जानेउ केहीं ॥२॥
गएँ जाम जुग भूपति आवा । घर घर उत्सव बाज बधावा ॥
उपरोहितहि देख जब राजा । चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा ॥३॥
जुग सम नृपहि गए दिन तीनी । कपटी मुनि पद रह मति लीनी ॥
समय जानि उपरोहित आवा । नृपहि मते सब कहि समुझावा ॥४॥
(दोहा)
नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत ।
बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत ॥ १७२ ॥