Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 25

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Lanka Kand  							Doha 25

Lanka Kand Doha 25

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अंगद और रावण का संवाद
 
सुनु सठ सोइ रावन बलसीला । हरगिरि जान जासु भुज लीला ॥
जान उमापति जासु सुराई । पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई ॥१॥
 
सिर सरोज निज करन्हि उतारी । पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी ॥
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला । सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला ॥२॥
 
जानहिं दिग्गज उर कठिनाई । जब जब भिरउँ जाइ बरिआई ॥
जिन्ह के दसन कराल न फूटे । उर लागत मूलक इव टूटे ॥३॥
 
जासु चलत डोलति इमि धरनी । चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी ॥
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी । सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी ॥४॥
 
(दोहा)
तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान ।
रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान ॥ २५ ॥

 

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