अंगद और रावण का संवाद
सुनि अंगद सकोप कह बानी । बोलु सँभारि अधम अभिमानी ॥
सहसबाहु भुज गहन अपारा । दहन अनल सम जासु कुठारा ॥१॥
जासु परसु सागर खर धारा । बूड़े नृप अगनित बहु बारा ॥
तासु गर्ब जेहि देखत भागा । सो नर क्यों दससीस अभागा ॥२॥
राम मनुज कस रे सठ बंगा । धन्वी कामु नदी पुनि गंगा ॥
पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा । अन्न दान अरु रस पीयूषा ॥३॥
बैनतेय खग अहि सहसानन । चिंतामनि पुनि उपल दसानन ॥
सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा । लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा ॥४॥
(दोहा)
सेन सहित तब मान मथि बन उजारि पुर जारि ॥
कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि ॥ २६ ॥