अंगद और रावण का संवाद
सुनु रावन परिहरि चतुराई । भजसि न कृपासिंधु रघुराई ॥
जौ खल भएसि राम कर द्रोही । ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही ॥१॥
मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला । राम बयर अस होइहि हाला ॥
तव सिर निकर कपिन्ह के आगें । परिहहिं धरनि राम सर लागें ॥२॥
ते तव सिर कंदुक सम नाना । खेलहहिं भालु कीस चौगाना ॥
जबहिं समर कोपहि रघुनायक । छुटिहहिं अति कराल बहु सायक ॥३॥
तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा । अस बिचारि भजु राम उदारा ॥
सुनत बचन रावन परजरा । जरत महानल जनु घृत परा ॥४॥
(दोहा)
कुंभकरन अस बंधु मम सुत प्रसिद्ध सक्रारि ।
मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेउँ चराचर झारि ॥ २७ ॥