युद्ध का वर्णन
भय आतुर कपि भागन लागे । जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे ॥
कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता । कहँ नल नील दुबिद बलवंता ॥१॥
निज दल बिकल सुना हनुमाना । पच्छिम द्वार रहा बलवाना ॥
मेघनाद तहँ करइ लराई । टूट न द्वार परम कठिनाई ॥२॥
पवनतनय मन भा अति क्रोधा । गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा ॥
कूदि लंक गढ़ ऊपर आवा । गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा ॥३॥
भंजेउ रथ सारथी निपाता । ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता ॥
दुसरें सूत बिकल तेहि जाना । स्यंदन घालि तुरत गृह आना ॥४॥
(दोहा)
अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल ।
रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढ़ेउ कपि खेल ॥ ४३ ॥