Monday, 23 December, 2024

Lanka Kand Doha 44

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Lanka Kand  							Doha 44

Lanka Kand Doha 44

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युद्ध का वर्णन
 
जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर । राम प्रताप सुमिरि उर अंतर ॥
रावन भवन चढ़े द्वौ धाई । करहि कोसलाधीस दोहाई ॥१॥
 
कलस सहित गहि भवनु ढहावा । देखि निसाचरपति भय पावा ॥
नारि बृंद कर पीटहिं छाती । अब दुइ कपि आए उतपाती ॥२॥
 
कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं । रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं ॥
पुनि कर गहि कंचन के खंभा । कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा ॥३॥
 
गर्जि परे रिपु कटक मझारी । लागे मर्दै भुज बल भारी ॥
काहुहि लात चपेटन्हि केहू । भजहु न रामहि सो फल लेहू ॥४॥
 
(दोहा)
एक एक सों मर्दहिं तोरि चलावहिं मुंड ।
रावन आगें परहिं ते जनु फूटहिं दधि कुंड ॥ ४४ ॥

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