युद्ध का वर्णन
देखि पवनसुत कटक बिहाला । क्रोधवंत जनु धायउ काला ॥
महासैल एक तुरत उपारा । अति रिस मेघनाद पर डारा ॥१॥
आवत देखि गयउ नभ सोई । रथ सारथी तुरग सब खोई ॥
बार बार पचार हनुमाना । निकट न आव मरमु सो जाना ॥२॥
रघुपति निकट गयउ घननादा । नाना भाँति करेसि दुर्बादा ॥
अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे । कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे ॥३॥
देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना । करै लाग माया बिधि नाना ॥
जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला । डरपावै गहि स्वल्प सपेला ॥४॥
(दोहा)
जासु प्रबल माया बल सिव बिरंचि बड़ छोट ।
ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट ॥ ५१ ॥