युद्ध का वर्णन
नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा । महि ते प्रगट होहिं जलधारा ॥
नाना भाँति पिसाच पिसाची । मारु काटु धुनि बोलहिं नाची ॥१॥
बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा । बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा ॥
बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा । सूझ न आपन हाथ पसारा ॥२॥
कपि अकुलाने माया देखें । सब कर मरन बना एहि लेखें ॥
कौतुक देखि राम मुसुकाने । भए सभीत सकल कपि जाने ॥३॥
एक बान काटी सब माया । जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया ॥
कृपादृष्टि कपि भालु बिलोके । भए प्रबल रन रहहिं न रोके ॥४॥
(दोहा)
आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ ।
लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ ॥ ५२ ॥