युद्ध का वर्णन
कुंभकरन मन दीख बिचारी । हति धन माझ निसाचर धारी ॥
भा अति क्रुद्ध महाबल बीरा । कियो मृगनायक नाद गँभीरा ॥१॥
कोपि महीधर लेइ उपारी । डारइ जहँ मर्कट भट भारी ॥
आवत देखि सैल प्रभू भारे । सरन्हि काटि रज सम करि डारे ॥२॥
पुनि धनु तानि कोपि रघुनायक । छाँड़े अति कराल बहु सायक ॥
तनु महुँ प्रबिसि निसरि सर जाहीं । जिमि दामिनि घन माझ समाहीं ॥३॥
सोनित स्त्रवत सोह तन कारे । जनु कज्जल गिरि गेरु पनारे ॥
बिकल बिलोकि भालु कपि धाए । बिहँसा जबहिं निकट कपि आए ॥४॥
(दोहा)
महानाद करि गर्जा कोटि कोटि गहि कीस ।
महि पटकइ गजराज इव सपथ करइ दससीस ॥ ६९ ॥