Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 80

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Lanka Kand  							Doha 80

Lanka Kand Doha 80

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युद्ध का वर्णन
 
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा । देखि बिभीषन भयउ अधीरा ॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा । बंदि चरन कह सहित सनेहा ॥१॥
 
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना । केहि बिधि जितब बीर बलवाना ॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना । जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना ॥२॥
 
सौरज धीरज तेहि रथ चाका । सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥
बल बिबेक दम परहित घोरे । छमा कृपा समता रजु जोरे ॥३॥
 
ईस भजनु सारथी सुजाना । बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा । बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥४॥
 
अमल अचल मन त्रोन समाना । सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा । एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥५॥
 
सखा धर्ममय अस रथ जाकें । जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥६॥
 
(दोहा)
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर ।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर ॥ ८०(क) ॥
 
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज ।
एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ॥ ८०(ख) ॥
 
उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान ।
लरत निसाचर भालु कपि करि निज निज प्रभु आन ॥ ८०(ग) ॥

 

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