Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 81

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Lanka Kand  							Doha 81

Lanka Kand Doha 81

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युद्ध का वर्णन
 
सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना । देखत रन नभ चढ़े बिमाना ॥
हमहू उमा रहे तेहि संगा । देखत राम चरित रन रंगा ॥१॥
 
सुभट समर रस दुहु दिसि माते । कपि जयसील राम बल ताते ॥
एक एक सन भिरहिं पचारहिं । एकन्ह एक मर्दि महि पारहिं ॥२॥
 
मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं । सीस तोरि सीसन्ह सन मारहिं ॥
उदर बिदारहिं भुजा उपारहिं । गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं ॥३॥
 
निसिचर भट महि गाड़हि भालू । ऊपर ढारि देहिं बहु बालू ॥
बीर बलिमुख जुद्ध बिरुद्धे । देखिअत बिपुल काल जनु क्रुद्धे ॥४॥
 
(छंद )
क्रुद्धे कृतांत समान कपि तन स्त्रवत सोनित राजहीं ।
मर्दहिं निसाचर कटक भट बलवंत घन जिमि गाजहीं ॥
मारहिं चपेटन्हि डाटि दातन्ह काटि लातन्ह मीजहीं ।
चिक्करहिं मर्कट भालु छल बल करहिं जेहिं खल छीजहीं ॥
 
धरि गाल फारहिं उर बिदारहिं गल अँतावरि मेलहीं ।
प्रहलादपति जनु बिबिध तनु धरि समर अंगन खेलहीं ॥
धरु मारु काटु पछारु घोर गिरा गगन महि भरि रही ।
जय राम जो तृन ते कुलिस कर कुलिस ते कर तृन सही ॥
 
(दोहा)
निज दल बिचलत देखेसि बीस भुजाँ दस चाप ।
रथ चढ़ि चलेउ दसानन फिरहु फिरहु करि दाप ॥ ८१ ॥

 

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