Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 82

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Lanka Kand  							Doha 82

Lanka Kand Doha 82

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युद्ध का वर्णन
 
धायउ परम क्रुद्ध दसकंधर । सन्मुख चले हूह दै बंदर ॥
गहि कर पादप उपल पहारा । डारेन्हि ता पर एकहिं बारा ॥१॥
 
लागहिं सैल बज्र तन तासू । खंड खंड होइ फूटहिं आसू ॥
चला न अचल रहा रथ रोपी । रन दुर्मद रावन अति कोपी ॥२॥
 
इत उत झपटि दपटि कपि जोधा । मर्दै लाग भयउ अति क्रोधा ॥
चले पराइ भालु कपि नाना । त्राहि त्राहि अंगद हनुमाना ॥३॥
 
पाहि पाहि रघुबीर गोसाई । यह खल खाइ काल की नाई ॥
तेहि देखे कपि सकल पराने । दसहुँ चाप सायक संधाने ॥४॥
 
(छंद)
संधानि धनु सर निकर छाड़ेसि उरग जिमि उड़ि लागहीं ।
रहे पूरि सर धरनी गगन दिसि बिदसि कहँ कपि भागहीं ॥
भयो अति कोलाहल बिकल कपि दल भालु बोलहिं आतुरे ।
रघुबीर करुना सिंधु आरत बंधु जन रच्छक हरे ॥
 
(दोहा)
निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ ।
लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ ॥ ८२ ॥

 

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