Thursday, 26 December, 2024

Lanka Kand Doha 83

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Lanka Kand  							Doha 83

Lanka Kand Doha 83

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युद्ध का वर्णन
 
रे खल का मारसि कपि भालू । मोहि बिलोकु तोर मैं कालू ॥
खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती । आजु निपाति जुड़ावउँ छाती ॥१॥
 
अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा । लछिमन किए सकल सत खंडा ॥
कोटिन्ह आयुध रावन डारे । तिल प्रवान करि काटि निवारे ॥२॥
 
पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा । स्यंदनु भंजि सारथी मारा ॥
सत सत सर मारे दस भाला । गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला ॥३॥
 
पुनि सत सर मारा उर माहीं । परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं ॥
उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी । छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी ॥४॥
 
(छंद)
सो ब्रह्म दत्त प्रचंड सक्ति अनंत उर लागी सही ।
पर्यो बीर बिकल उठाव दसमुख अतुल बल महिमा रही ॥
ब्रह्मांड भवन बिराज जाकें एक सिर जिमि रज कनी ।
तेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुअन धनी ॥
 
(दोहा)
देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर ।
आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर ॥ ८३ ॥

 

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