मेघनाद के शक्तिप्रहार से लक्ष्मण मूर्छित
घायल बीर बिराजहिं कैसे । कुसुमित किंसुक के तरु जैसे ॥
लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा । भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा ॥१॥
एकहि एक सकइ नहिं जीती । निसिचर छल बल करइ अनीती ॥
क्रोधवंत तब भयउ अनंता । भंजेउ रथ सारथी तुरंता ॥२॥
नाना बिधि प्रहार कर सेषा । राच्छस भयउ प्रान अवसेषा ॥
रावन सुत निज मन अनुमाना । संकठ भयउ हरिहि मम प्राना ॥३॥
बीरघातिनी छाड़िसि साँगी । तेज पुंज लछिमन उर लागी ॥
मुरुछा भई सक्ति के लागें । तब चलि गयउ निकट भय त्यागें ॥४॥
(दोहा)
मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ ।
जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ ॥ ५४ ॥