मंदोदरी की रावण को सलाह
नाथ दीनदयाल रघुराई । बाघउ सनमुख गएँ न खाई ॥
चाहिअ करन सो सब करि बीते । तुम्ह सुर असुर चराचर जीते ॥१॥
संत कहहिं असि नीति दसानन । चौथेंपन जाइहि नृप कानन ॥
तासु भजन कीजिअ तहँ भर्ता । जो कर्ता पालक संहर्ता ॥२॥
सोइ रघुवीर प्रनत अनुरागी । भजहु नाथ ममता सब त्यागी ॥
मुनिबर जतनु करहिं जेहि लागी । भूप राजु तजि होहिं बिरागी ॥३॥
सोइ कोसलधीस रघुराया । आयउ करन तोहि पर दाया ॥
जौं पिय मानहु मोर सिखावन । सुजसु होइ तिहुँ पुर अति पावन ॥४॥
(दोहा)
अस कहि नयन नीर भरि गहि पद कंपित गात ।
नाथ भजहु रघुनाथहि अचल होइ अहिवात ॥ ७ ॥