Sunday, 22 December, 2024

Manthara continue her efforts

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Manthara continue her efforts

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मंथरा ने अपनी कोशिश जारी रखी 
 
एकहिं बार आस सब पूजी । अब कछु कहब जीभ करि दूजी ॥
फोरै जोगु कपारु अभागा । भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ॥१॥
 
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई । ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई ॥
हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती । नाहिं त मौन रहब दिनु राती ॥२॥
 
करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा । बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा ॥
कोउ नृप होउ हमहि का हानी । चेरि छाड़ि अब होब कि रानी ॥३॥
 
जारै जोगु सुभाउ हमारा । अनभल देखि न जाइ तुम्हारा ॥
तातें कछुक बात अनुसारी । छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी ॥४॥
 
(दोहा)    
गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि ।
सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि ॥ १६ ॥

 

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