मनु और शतरूपा का तप प्रारंभ
(चौपाई)
करहिं अहार साक फल कंदा । सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा ॥
पुनि हरि हेतु करन तप लागे । बारि अधार मूल फल त्यागे ॥१॥
उर अभिलाष निंरंतर होई । देखा नयन परम प्रभु सोई ॥
अगुन अखंड अनंत अनादी । जेहि चिंतहिं परमारथबादी ॥२॥
नेति नेति जेहि बेद निरूपा । निजानंद निरुपाधि अनूपा ॥
संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना । उपजहिं जासु अंस तें नाना ॥३॥
ऐसेउ प्रभु सेवक बस अहई । भगत हेतु लीलातनु गहई ॥
जौं यह बचन सत्य श्रुति भाषा । तौ हमार पूजहि अभिलाषा ॥४॥
(दोहा)
एहि बिधि बीतें बरष षट सहस बारि आहार ।
संबत सप्त सहस्त्र पुनि रहे समीर अधार ॥ १४४ ॥