बारातियों का वर्णन
(चौपाई)
बर अनुहारि बरात न भाई । हँसी करैहहु पर पुर जाई ॥
बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने । निज निज सेन सहित बिलगाने ॥१॥
मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं । हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं ॥
अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे । भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे ॥२॥
सिव अनुसासन सुनि सब आए । प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए ॥
नाना बाहन नाना बेषा । बिहसे सिव समाज निज देखा ॥३॥
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू । बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ॥
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना । रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना ॥४॥
(छंद)
तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें ।
भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें ॥
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै ।
बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै ॥
(सोरठा)
नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब ।
देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि ॥ ९३ ॥