वानर सेना का लंका पर चारों ओर से हमला
लंकाँ भयउ कोलाहल भारी । सुना दसानन अति अहँकारी ॥
देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई । बिहँसि निसाचर सेन बोलाई ॥१॥
आए कीस काल के प्रेरे । छुधावंत सब निसिचर मेरे ॥
अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा । गृह बैठे अहार बिधि दीन्हा ॥२॥
सुभट सकल चारिहुँ दिसि जाहू । धरि धरि भालु कीस सब खाहू ॥
उमा रावनहि अस अभिमाना । जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना ॥३॥
चले निसाचर आयसु मागी । गहि कर भिंडिपाल बर साँगी ॥
तोमर मुग्दर परसु प्रचंडा । सुल कृपान परिघ गिरिखंडा ॥४॥
जिमि अरुनोपल निकर निहारी । धावहिं सठ खग मांस अहारी ॥
चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा । तिमि धाए मनुजाद अबूझा ॥ ५ ॥
(दोहा)
नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर ।
कोट कँगूरन्हि चढ़ि गए कोटि कोटि रनधीर ॥ ४० ॥