सेतुनिर्माण कार्य संपन्न, वानरसेना समुद्रपार पहोंची
बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा । देखि कृपानिधि के मन भावा ॥
चली सेन कछु बरनि न जाई । गर्जहिं मर्कट भट समुदाई ॥१॥
सेतुबंध ढिग चढ़ि रघुराई । चितव कृपाल सिंधु बहुताई ॥
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा । प्रगट भए सब जलचर बृंदा ॥२॥
मकर नक्र नाना झष ब्याला । सत जोजन तन परम बिसाला ॥
अइसेउ एक तिन्हहि जे खाहीं । एकन्ह कें डर तेपि डेराहीं ॥३॥
प्रभुहि बिलोकहिं टरहिं न टारे । मन हरषित सब भए सुखारे ॥
तिन्ह की ओट न देखिअ बारी । मगन भए हरि रूप निहारी ॥४॥
चला कटकु प्रभु आयसु पाई । को कहि सक कपि दल बिपुलाई ॥५॥
(दोहा)
सेतुबंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं ।
अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं ॥ ४ ॥