सीता की खोज करने वानरसेना तैयार
बानर कटक उमा में देखा । सो मूरुख जो करन चह लेखा ॥
आइ राम पद नावहिं माथा । निरखि बदनु सब होहिं सनाथा ॥१॥
अस कपि एक न सेना माहीं । राम कुसल जेहि पूछी नाहीं ॥
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई । बिस्वरूप ब्यापक रघुराई ॥
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई । कह सुग्रीव सबहि समुझाई ॥
राम काजु अरु मोर निहोरा । बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा ॥३॥
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई । मास दिवस महँ आएहु भाई ॥
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ । आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ ॥४॥
(दोहा)
बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत ।
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत ॥ २२ ॥