नारद और सप्तर्षि द्वारा मेना को सांत्वना
(चौपाई)
नारद कर मैं काह बिगारा । भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा ॥
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा । बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा ॥१॥
साचेहुँ उन्ह के मोह न माया । उदासीन धनु धामु न जाया ॥
पर घर घालक लाज न भीरा । बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा ॥२॥
जननिहि बिकल बिलोकि भवानी । बोली जुत बिबेक मृदु बानी ॥
अस बिचारि सोचहि मति माता । सो न टरइ जो रचइ बिधाता ॥३॥
करम लिखा जौ बाउर नाहू । तौ कत दोसु लगाइअ काहू ॥
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका । मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका ॥४॥
(छंद)
जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं ।
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं ॥
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं ॥
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं ॥
(दोहा)
तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत ।
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत ॥ ९७ ॥