नारदजी ने शाप में परिवर्तन किया
(चौपाई)
हर गन मुनिहि जात पथ देखी । बिगतमोह मन हरष बिसेषी ॥
अति सभीत नारद पहिं आए । गहि पद आरत बचन सुनाए ॥१॥
हर गन हम न बिप्र मुनिराया । बड़ अपराध कीन्ह फल पाया ॥
श्राप अनुग्रह करहु कृपाला । बोले नारद दीनदयाला ॥२॥
निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ । बैभव बिपुल तेज बल होऊ ॥
भुजबल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ।धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ ॥३॥
समर मरन हरि हाथ तुम्हारा । होइहहु मुकुत न पुनि संसारा ॥
चले जुगल मुनि पद सिर नाई । भए निसाचर कालहि पाई ॥४॥
(दोहा)
एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार ।
सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुबि भार ॥ १३९ ॥