नारद द्वारा उमा के पूर्वजन्म का रहस्योद्घाटन
(चौपाई)
तब नारद सबहि समुझावा । पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा ॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी । जगदंबा तव सुता भवानी ॥१॥
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि । सदा संभु अरधंग निवासिनि ॥
जग संभव पालन लय कारिनि । निज इच्छा लीला बपु धारिनि ॥२॥
जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई । नामु सती सुंदर तनु पाई ॥
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं । कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं ॥३॥
एक बार आवत सिव संगा । देखेउ रघुकुल कमल पतंगा ॥
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा । भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा ॥४॥
(छंद)
सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं ।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं ॥
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया ।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया ॥
(दोहा)
सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद ।
छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद ॥ ९८ ॥