नारद ने अपनी बात विष्णु भगवान को बताई
(चौपाई)
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई । करै अन्यथा अस नहिं कोई ॥
संभु बचन मुनि मन नहिं भाए । तब बिरंचि के लोक सिधाए ॥१॥
एक बार करतल बर बीना । गावत हरि गुन गान प्रबीना ॥
छीरसिंधु गवने मुनिनाथा । जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा ॥२॥
हरषि मिले उठि रमानिकेता । बैठे आसन रिषिहि समेता ॥
बोले बिहसि चराचर राया । बहुते दिनन कीन्हि मुनि दाया ॥३॥
काम चरित नारद सब भाषे । जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे ॥
अति प्रचंड रघुपति कै माया । जेहि न मोह अस को जग जाया ॥४॥
(दोहा)
रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्री भगवान ।
तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं मोह मार मद मान ॥ १२८ ॥