नारदजी हिमालय के घर
(चौपाई)
सरिता सब पुनित जलु बहहीं । खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं ॥
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा । गिरि पर सकल करहिं अनुरागा ॥१॥
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ । जिमि जनु रामभगति के पाएँ ॥
नित नूतन मंगल गृह तासू । ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू ॥२॥
नारद समाचार सब पाए । कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए ॥
सैलराज बड़ आदर कीन्हा । पद पखारि बर आसनु दीन्हा ॥३॥
नारि सहित मुनि पद सिरु नावा । चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा ॥
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना । सुता बोलि मेली मुनि चरना ॥४॥
(दोहा)
त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि ॥
कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि ॥ ६६ ॥