परशुराम का गुस्सा साँतवे आसमान पर
(चौपाई)
मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया । परिहरि कोपु करिअ अब दाया ॥
टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने । बैठिअ होइहिं पाय पिराने ॥१॥
जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई । जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई ॥
बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं । मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं ॥२॥
थर थर कापहिं पुर नर नारी । छोट कुमार खोट बड़ भारी ॥
भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी । रिस तन जरइ होइ बल हानी ॥३॥
बोले रामहि देइ निहोरा । बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा ॥
मनु मलीन तनु सुंदर कैसें । बिष रस भरा कनक घटु जैसैं ॥४॥
(दोहा)
सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम ।
गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम ॥ २७८ ॥