पार्वतीने भगवान शंकर से यज्ञ में जाने की अनुमति माँगी
(चौपाई)
किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा । बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा ॥
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई । चले सकल सुर जान बनाई ॥१॥
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना । जात चले सुंदर बिधि नाना ॥
सुर सुंदरी करहिं कल गाना । सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना ॥२॥
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी । पिता जग्य सुनि कछु हरषानी ॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं । कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं ॥३॥
पति परित्याग हृदय दुखु भारी । कहइ न निज अपराध बिचारी ॥
बोली सती मनोहर बानी । भय संकोच प्रेम रस सानी ॥४॥
(दोहा)
पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ ।
तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ ॥ ६१ ॥