भगवान शिव का अपमान असह्य लगने से पार्वती का देहत्याग
(चौपाई)
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा । कही सुनी जिन्ह संकर निंदा ॥
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ । भली भाँति पछिताब पिताहूँ ॥१॥
संत संभु श्रीपति अपबादा । सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा ॥
काटिअ तासु जीभ जो बसाई । श्रवन मूदि न त चलिअ पराई ॥२॥
जगदातमा महेसु पुरारी । जगत जनक सब के हितकारी ॥
पिता मंदमति निंदत तेही । दच्छ सुक्र संभव यह देही ॥३॥
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू । उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू ॥
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा । भयउ सकल मख हाहाकारा ॥४॥
(दोहा)
सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस ।
जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस ॥ ६४ ॥