हिमालय के घर पार्वती का पुनर्जन्म
(चौपाई)
समाचार सब संकर पाए । बीरभद्रु करि कोप पठाए ॥
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा । सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा ॥१॥
भे जगबिदित दच्छ गति सोई । जसि कछु संभु बिमुख कै होई ॥
यह इतिहास सकल जग जानी । ताते मैं संछेप बखानी ॥२॥
सतीं मरत हरि सन बरु मागा । जनम जनम सिव पद अनुरागा ॥
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई । जनमीं पारबती तनु पाई ॥३॥
जब तें उमा सैल गृह जाईं । सकल सिद्धि संपति तहँ छाई ॥
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे । उचित बास हिम भूधर दीन्हे ॥४॥
(दोहा)
सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति ।
प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति ॥ ६५ ॥