अवधवासी समाचार से प्रसन्न
(चौपाई)
कहत चले पहिरें पट नाना । हरषि हने गहगहे निसाना ॥
समाचार सब लोगन्ह पाए । लागे घर घर होने बधाए ॥१॥
भुवन चारि दस भरा उछाहू । जनकसुता रघुबीर बिआहू ॥
सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे । मग गृह गलीं सँवारन लागे ॥२॥
जद्यपि अवध सदैव सुहावनि । राम पुरी मंगलमय पावनि ॥
तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई । मंगल रचना रची बनाई ॥३॥
ध्वज पताक पट चामर चारु । छावा परम बिचित्र बजारू ॥
कनक कलस तोरन मनि जाला । हरद दूब दधि अच्छत माला ॥४॥
(दोहा)
मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ ।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ ॥ २९६ ॥