अयोध्यावासीओ द्वारा नवदंपतिओं का स्वागत
(चौपाई)
हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे ॥
झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई ॥१॥
पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता ॥
निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहट पुर द्वारे ॥२॥
गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु पुराई ॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना ॥३॥
सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब तमाला ॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी ॥४॥
(दोहा)
बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि।
सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि ॥ ३४४ ॥