सभामंडप में लोगों ने श्रीराम को जीत का दावेदार माना
(चौपाई)
प्रभुहि देखि सब नृप हिँयँ हारे । जनु राकेस उदय भएँ तारे ॥
असि प्रतीति सब के मन माहीं । राम चाप तोरब सक नाहीं ॥१॥
बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला । मेलिहि सीय राम उर माला ॥
अस बिचारि गवनहु घर भाई । जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई ॥२॥
बिहसे अपर भूप सुनि बानी । जे अबिबेक अंध अभिमानी ॥
तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा । बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा ॥३॥
एक बार कालउ किन होऊ । सिय हित समर जितब हम सोऊ ॥
यह सुनि अवर महिप मुसकाने । धरमसील हरिभगत सयाने ॥४॥
(सोरठा)
सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के ॥
जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे ॥ २४५ ॥