बारात को देखकर लोगों की प्रतिक्रिया
(चौपाई)
नगर निकट बरात सुनि आई । पुर खरभरु सोभा अधिकाई ॥
करि बनाव सजि बाहन नाना । चले लेन सादर अगवाना ॥१॥
हियँ हरषे सुर सेन निहारी । हरिहि देखि अति भए सुखारी ॥
सिव समाज जब देखन लागे । बिडरि चले बाहन सब भागे ॥२॥
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने । बालक सब लै जीव पराने ॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता । कहहिं बचन भय कंपित गाता ॥३॥
कहिअ काह कहि जाइ न बाता । जम कर धार किधौं बरिआता ॥
बरु बौराह बसहँ असवारा । ब्याल कपाल बिभूषन छारा ॥४॥
(छंद)
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा ।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा ॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही ।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही ॥
(दोहा)
समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं ।
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं ॥ ९५ ॥