लंका पर चढाई करने की श्रीराम की व्यूहरचना
रिपु के समाचार जब पाए । राम सचिव सब निकट बोलाए ॥
लंका बाँके चारि दुआरा । केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा ॥१॥
तब कपीस रिच्छेस बिभीषन । सुमिरि हृदयँ दिनकर कुल भूषन ॥
करि बिचार तिन्ह मंत्र दृढ़ावा । चारि अनी कपि कटकु बनावा ॥२॥
जथाजोग सेनापति कीन्हे । जूथप सकल बोलि तब लीन्हे ॥
प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए । सुनि कपि सिंघनाद करि धाए ॥३॥
हरषित राम चरन सिर नावहिं । गहि गिरि सिखर बीर सब धावहिं ॥
गर्जहिं तर्जहिं भालु कपीसा । जय रघुबीर कोसलाधीसा ॥४॥
जानत परम दुर्ग अति लंका । प्रभु प्रताप कपि चले असंका ॥
घटाटोप करि चहुँ दिसि घेरी । मुखहिं निसान बजावहीं भेरी ॥५॥
(दोहा)
जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव ।
गर्जहिं सिंघनाद कपि भालु महा बल सींव ॥ ३९ ॥