रामचरितमानस कथा की तुलना
(चौपाई)
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी । रामचरितमानस कबि तुलसी ॥
करइ मनोहर मति अनुहारी । सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी ॥१॥
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदधि घन साधू ॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥२॥
लीला सगुन जो कहहिं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई । सोइ मधुरता सुसीतलताई ॥३॥
सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥
मेधा महि गत सो जल पावन । सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन ॥४॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना । सुखद सीत रुचि चारु चिराना ॥५॥
(दोहा)
सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि ।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ॥ ३६ ॥