शिकार प्रतापभानु को जंगल में दूर तक ले जाता है
(चौपाई)
आवत देखि अधिक रव बाजी । चलेउ बराह मरुत गति भाजी ॥
तुरत कीन्ह नृप सर संधाना । महि मिलि गयउ बिलोकत बाना ॥१॥
तकि तकि तीर महीस चलावा । करि छल सुअर सरीर बचावा ॥
प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा । रिस बस भूप चलेउ संग लागा ॥२॥
गयउ दूरि घन गहन बराहू । जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू ॥
अति अकेल बन बिपुल कलेसू । तदपि न मृग मग तजइ नरेसू ॥३॥
कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा । भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा ॥
अगम देखि नृप अति पछिताई । फिरेउ महाबन परेउ भुलाई ॥४॥
(दोहा)
खेद खिन्न छुद्धित तृषित राजा बाजि समेत ।
खोजत ब्याकुल सरित सर जल बिनु भयउ अचेत ॥ १५७ ॥