Thursday, 14 November, 2024

Procession reach Himalaya’s place

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बारात पहूँची हिमालय के द्वार
 
(चौपाई)
जस दूलहु तसि बनी बराता । कौतुक बिबिध होहिं मग जाता ॥
इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना । अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना ॥१॥
 
सैल सकल जहँ लगि जग माहीं । लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं ॥
बन सागर सब नदीं तलावा । हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा ॥२॥
 
कामरूप सुंदर तन धारी । सहित समाज सहित बर नारी ॥
गए सकल तुहिनाचल गेहा । गावहिं मंगल सहित सनेहा ॥३॥
 
प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए । जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए ॥
पुर सोभा अवलोकि सुहाई । लागइ लघु बिरंचि निपुनाई ॥४॥
 
(छंद)
लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही ।
बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही ॥
मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं ॥
बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं ॥
 
(दोहा)
जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ ।
रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ ॥ ९४ ॥

 

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