बारात मिथिलानगरी पहोंची
(चौपाई)
मंगल सगुन सुगम सब ताकें । सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें ॥
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता । समधी दसरथु जनकु पुनीता ॥१॥
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे । अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे ॥
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना । हय गय गाजहिं हने निसाना ॥२॥
आवत जानि भानुकुल केतू । सरितन्हि जनक बँधाए सेतू ॥
बीच बीच बर बास बनाए । सुरपुर सरिस संपदा छाए ॥३॥
असन सयन बर बसन सुहाए । पावहिं सब निज निज मन भाए ॥
नित नूतन सुख लखि अनुकूले । सकल बरातिन्ह मंदिर भूले ॥४॥
(दोहा)
आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान ।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान ॥ ३०४ ॥
॥ मासपारायण दसवाँ विश्राम ॥