अयोध्या जाने के लिए पुष्पक विमान तैयार
सुनत बिभीषन बचन राम के । हरषि गहे पद कृपाधाम के ॥
बानर भालु सकल हरषाने । गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने ॥१॥
बहुरि बिभीषन भवन सिधायो । मनि गन बसन बिमान भरायो ॥
लै पुष्पक प्रभु आगें राखा । हँसि करि कृपासिंधु तब भाषा ॥२॥
चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन । गगन जाइ बरषहु पट भूषन ॥
नभ पर जाइ बिभीषन तबही । बरषि दिए मनि अंबर सबही ॥३॥
जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं । मनि मुख मेलि डारि कपि देहीं ॥
हँसे रामु श्री अनुज समेता । परम कौतुकी कृपा निकेता ॥४॥
(दोहा)
मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद ।
कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद ॥ ११७(क) ॥
उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम ।
राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम ॥ ११७(ख) ॥